शनिवार, 31 अक्टूबर 2009

दीपक ' बेदिल ' की ग़ज़ल



मुझसे हाथ मिला मुझसे बात भी कर

मुझसे नाराज भी हो मुलाक़ात भी कर



मेरे नजदीक भी आ मुझसे दूर भी जा

मुझसे मुहब्बत मुझसे फसादात भी कर



कभी मंदिर जा कभी सहेलियों के घर भी

कभी चैन से बैठ कभी खुराफात भी कर



राज छुपा भी ले दिल के राज बता भी दे

गुमसुम भी रह और हंसकर बात भी कर



बेदिल ग़ज़ल भी लिख ले मक़ता भी बना

और मिस्रा-ए-सानी की शुरुआत भी कर

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