शनिवार, 31 अक्तूबर 2009

दीपक ' बेदिल ' की ग़ज़ल



मुझसे हाथ मिला मुझसे बात भी कर

मुझसे नाराज भी हो मुलाक़ात भी कर



मेरे नजदीक भी आ मुझसे दूर भी जा

मुझसे मुहब्बत मुझसे फसादात भी कर



कभी मंदिर जा कभी सहेलियों के घर भी

कभी चैन से बैठ कभी खुराफात भी कर



राज छुपा भी ले दिल के राज बता भी दे

गुमसुम भी रह और हंसकर बात भी कर



बेदिल ग़ज़ल भी लिख ले मक़ता भी बना

और मिस्रा-ए-सानी की शुरुआत भी कर

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009

अपने बच्चों के लिए एक चिठ्ठी ; निशांत के ब्लॉग से साभार

बच्चोँ के लिए एक चिठ्ठी ;
निशांत के ब्लॉग से साभार


डॉ. प्रवीण चोपड़ा के ब्लॉग पर इस पोस्ट में दिखाए गए स्लाइड-शो ने भावुक कर दिया. मेरे बच्चे अभी बहुत छोटे हैं लेकिन उनके साथ बिताए हर पल मेरी आंखों के सामने आ गए. तीन महीने पहले बुखार से तप रहे तीन साल के बेटे की दवाई लाने के लिए रात के एक बजे अपने घर से पंद्रह किलोमीटर दूर जाना, अंजानी सडकों में कैमिस्टों की खुली दुकानें टटोलते खाली हाथ वापस आना और रातभर गीली पट्टी करते हुए सुबह डॉक्टर के क्लीनिक खुलने का इंतज़ार करना.

ऐसे में मुझे बरबस मेरे पिता याद आते रहे… और मम्मी का मुझे अक्सर यह बतलाना कि कैसे बचपन में मेरी सलामती के लिए दोनों रात-रात भर जागते रहे थे.

और फिर मुझे बार-बार यह भी याद आता रहा कि न जाने कितने ही मौकों पर मैंने जानते हुए उनका दिल दुखाया… अनजाने की तो कोई गिनती भी न होगी.

आप शायद समझ रहे होंगे मेरे भीतर क्या चल रहा है. एक दिन मैं भी बूढ़ा हो जाऊंगा और उस समय के लिए मैं अपने बच्चों से आज यही कहना चाहूंगा:-

“मेरे प्यारे बच्चों,

जिस दिन तुम्हें यह लगे कि मैं बूढ़ा हो गया हूं, तुम खुद में थोड़ा धीरज लाना और मुझे समझने की कोशिश करना…

जब खाना खाते समय मुझसे कुछ गिर जाए… जब मुझसे कपड़े सहेजते न बनें… तो थोड़ा सब्र करना, मेरे बच्चों…और उन दिनों को याद करना जब मैंने तुम्हें यह सब सिखाने में न जाने कितना समय लगाया था.

मैं कभी एक ही बात को कई बार दोहराने लगूं तो मुझे टोकना मत. मेरी बातें सुनना. जब तुम बहुत छोटे थे तब हर रात मुझे एक ही कहानी बार-बार सुनाने के लिए कहते थे, और मैं ऐसा ही करता था जब तक तुम्हें नींद नहीं आ जाती थी.



अगर मैं कभी अपने को ठीक से साफ न कर पाऊं तो मुझे डांटना नहीं… यह न कहना कि यह कितने शर्म की बात है…तुम्हें याद है जब तुम छोटे थे तब तुम्हें अच्छे से नहलाने के लिए मुझे नित नए जतन करने पड़ते थे?

हर पल कितना कुछ बदलता जा रहा है. यदि मैं नया रिमोट, मोबाइल, या कम्प्यूटर चलाना न सीख पाऊं तो मुझपर हंसना मत… थोड़ा वक़्त दे देना… शायद मुझे यह सब चलाना आ जाए.

मैं तुम्हें ज़िंदगी भर कितना कुछ सिखाता रहा…अच्छे से खाओ, ठीक से कपड़े पहनो, बेहतर इंसान बनो, हर मुश्किल का डटकर सामना करो… याद है न?

बढ़ती उम्र के कारण यदि मेरी याददाश्त कमज़ोर हो जाए… या फिर बातचीत के दौरान मेरा ध्यान भटक जाए तो मुझे उस बात को याद करने को मौका ज़रूर देना. मैं कभी कुछ भूल बैठूं तो झुंझलाना नहीं… गुस्सा मत होना… क्योंकि उस समय तुम्हें अपने पास पाना और तुमसे बातें कर सकना मेरी सबसे बड़ी खुशी होगी… सबसे बड़ी पूंजी होगी.

अगर मैं कभी खाना खाने से इंकार कर दूं तो मुझे जबरन मत खिलाना. बुढ़ापे में सबका हिसाब-खिताब बिगड़ जाता है. मुझे जब भूख लगेगी तो मैं खुद ही खा लूंगा.

एक दिन ऐसा आएगा जब मैं चार कदम चलने से भी लाचार हो जाऊंगा…उस दिन तुम मुझे मजबूती से थामके वैसे ही सहारा दोगे न जैसे मैं तुम्हें चलना सिखाता था?

फिर एक दिन ऐसा भी आएगा जब मैं तुमसे कहूंगा – “मैं अब और जीना नहीं चाहता… मेरा अंत निकट है”. यह सुनकर तुम नाराज़ न होना… क्योंकि एक दिन तुम भी यह जान जाओगे वृद्धजन ऐसा क्यों कहते हैं.

यह समझने की कोशिश करना कि एक उम्र बीत जाने के बाद लोग जीते नहीं हैं बल्कि अपना समय काटते हैं.

एक दिन तुम यह जान जाओगे कि अपनी तमाम नाकामियों और गलतियों के बाद भी मैंने हमेशा तुम्हारा भले के लिए ही ईश्वर से प्रार्थना की.

अपने प्रेम और धीरज का सहारा देकर मुझे ज़िंदगी के आखरी पड़ाव तक थामे रखना. तुम्हारी प्रेमपूर्ण मुस्कान ही मेरा संबल होगी.

कभी न भूलना मेरे प्यारे बच्चों… कि मैंने तुमसे ही सबसे ज्यादा प्रेम किया.

तुम्हारा पिता

(डॉ. चोपड़ा के ब्लॉग पर लिखी पोस्ट में दिखाए गए स्लाइड-शो का अनुवाद)

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2009

आई लव इंदौर

हमें इंदौर से है प्यार !

इंदौर देश तो क्या, दुनिया का अनूठा शहर है। यहाँ की हर बात निराली है। यहाँ का भूगोल, यहाँ का इतिहास, यहाँ की मस्ती, यहाँ की हस्ती, यहाँ की फिजाये, यहाँ की वादियाँ, यहाँ की सड़कें, यहाँ की बिल्डिंग्स, यहाँ का ट्रेफिक,यहाँ का कारोबार, यहाँ के स्कूल, यहाँ के कालेज, यहाँ का आई आई टी, यहाँ का आई आई एम, यहाँ की कोचिंग, यहाँ की बसें, यहाँ के हास्पिटल, यहाँ के डॉक्टर, यहाँ का कारोबार, यहाँ के बार, यहाँ के ब्यूटी पार्लर, यहाँ, के अखबार, यहाँ के सराफ, यहाँ के चटोरे, यहाँ के पत्रकार, यहाँ के साहूकार, यहाँ के बैंक, यहाँ के बीमा एजेंट, यहाँ के ट्रांसपोर्टर, यहाँ की मिठाई, यहाँ के हलवाई, यहाँ की कचोरी, यहाँ के पोहे, यहों की जलेबी, यहाँ का हॉट डॉग, यहाँ का पीटी, यहाँ का जीटी, यहाँ का सयाजी, यहाँ का शाहजी, यहाँ का बर्तन बाज़ार, यहाँ का कपडा बाज़ार, यहाँ का चोर बाज़ार, यहाँ की सब्जी मंडी, यहाँ का लालबाग, यहाँ का मेघदूत, पुराना सी के डी, नया रवींद्र नाट्य ग्रह नयी आर्ट गैलरी, पुरानी मिल की चिमनी, नया रिलायंस ग्राउंड, पुराना नेहरू स्टेडियम, सुबह के ताजे मोटे रंगीन अखबार, दुपहरिया को शाम के मज़ेदार अखबार, ऍफ़ एम् रेडियो, खनकती अनीता जोशी की आवाज़, रेसीडेंसी के अफसर, यशवंत क्लब के वाकर, यहाँ के वकील, यहाँ का प्रेस क्लब, यहाँ का टी आई, खजराना के गणेश जी, इस्कान के कान्हाजी, व्हाइट चर्च, लाल अस्पताल, सफ़ेद कोठी, ग्रीन सीटी, यशवंत सागर, चोखी धानी, रूफ टॉप पार्किंग, नए नए स्पा, फास्ट कारें, नन्हे विमान........................................और भी न जाने क्या क्या?

और मुट्ठी भर चांदनी, थोड़ी सी सुस्ती, मनमोहक खुशबू, ज़रा सा आलस।

यही नही है असली इंदौर।

असली इंदौर इस सबसे बढ़कर है। वही है जो इंदौर को इंदौर बनाता है। असली इंदौर।

..................और वो है यहाँ के लोग। दुनिया में और चीजें इंदौर से अच्छी शायद होगी, हों भी तो अचरज नहीं, लेकिन इंदौर के जैसे लोग दुनिया में शायद ही मिलें।

ये लोग ही हैं असली इंदौर। इंदौर की आत्मा। इंदौर के मालिक।

सलाम इंदौर। आई लव यू सो मच।

फ़क़त इन्दौरी
---प्रकाश हिन्दुस्तानी
१५.१०.२००९। (धन तेरस)